न्यूज11 भारत, दीपक
रांची: झारखंड सरकार ने पलामू के कठौतिया में कोल ब्लाक आवंटन मामले में कार्रवाई शुरू कर दी है. पलामू के तत्कालीन एसडीओ सुधीर कुमार दास पर कार्रवाई की गयी है. इस पर उन्होंने कई खुलासे भी किये हैं. कठौतिया कोल ब्लाक ऊषा मार्टिन कंपनी को आवंटित की गयी थी. इस कोयला खदान के लिए 82.76 एकड़ जंगल, झाड़ी की जमीन को गैरमजरुआ घोषित कर कोयला उत्खनन के लिए आवंटित किया गया था. यह नियम विरुद्ध था और इसमें छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की विभिन्न धाराओं का सरासर उल्लंघन किया गया था. तत्कालीन अंचल अधिकारी के बाद पलामू के तत्कालीन भूमि सुधार उप समाहर्ता (एलआरडीसी) ने भी जंगल-झाड़ी की जमीन कोयला खदान के लिए देने की अनुशंसा की थी. एलआरडीसी और अंचल अधिकारी ने यह लिखा था कि प्रस्तावित भूमि खतियान के आधार पर गैर मजरुआ मालिक है.
ऊषा मार्टिन को दिया गये जमीन में TORN खतियान का उल्लेख
ऊषा मार्टिन कंपनी को जो गैर मजरूआ जमीन दी गयी थी, उसके खतियान की प्रमाणित प्रतिलिपि में TORN खतियान लिखा पाया गया था. इस मामले में प्रमंडलीय आयुक्त एनके मिश्रा ने 29 जनवरी 2015 को पलामू की उपायुक्त रही पूजा सिंघल, एसडीओ सुधीर कुमार दास समेत कई अन्य लोगों के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनुशंसा की थी. डीसी और एसडीओ पर आरोप पत्र भी गठित किये गये थे. प्रमंडलीय आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि खतियानों की जांच किये बिना जंगल-झाड़ी की जमीन को गैर मजरुआ भूमि मान कर खनन कार्य की स्वीकृति का प्रस्ताव डीसी तक दिया गया, जो नियमों के विपरीत था.
एसडीओ ने किये कई खुलासे
एसडीओ ने अपने ऊपर लगे आरोपों के बाबत कई खुलासे भी किये हैं. उन्होंने अपने स्पष्टीकरण में कहा था कि तत्कालीन उपायुक्त द्वारा उनसे रिपोर्ट मांगी गयी थी. डीसी की रिपोर्ट पर ही मेरे ऊपर विभागीय कार्रवाई 7 जनवरी 2019 में शुरू की गयी. एसडीओ ने अपने बचाव में कहा था कि मैंने कठौतिया कोल माइंस से संबंधित रिकार्ड के साथ नक्शा, चेक स्लीप, खतियान की सत्यापित प्रति, खेसरा पंजी समर्पित की थी. अभिलेख में सीओ की जांच रिपोर्ट भी लगायी गयी थी, जिसमें कहा गया था कि कठौतिया कोल माइस की जंगल-झाड़ी की जमीन भू-दान, भू हदबंदी तथा वन सीमा से मुक्त है, जिसे प्रमाणित भी किया गया था. राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के उस आदेश का भी पालन किया गया, जिसमें सरकारी भूमि का हस्तांतरण के लिए नियम बनाये गये हैं. इसमें अंचल स्तर पर खतियानी जमीन की जांच करने के अलावा आम ईश्तहार निर्गत करने, ग्राम सभा की सहमति, चेक स्लीप की तैयारी करने औऱ नक्शा जारी करने की जवाबदेही सीओ की है.
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने लिखा था सभी डीसी को पत्र
राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने 1.12.2015 के द्वारा सभी जिलों के उपायुक्तों को पत्र लिख कर कहा था कि वन विभाग के जंगल-झाड़ी की जमीन जो वन संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रभावी होने के चलते विवादित हो जाते हैं. वैसी स्थिति में उपायुक्त इस बात का ध्यान रखें कि 1964 के सर्वे खतियान के आधार पर जंगल-झाड़ी नेचर के जमीन रैयतों औऱ् अन्य विभागों के नाम से दर्ज है. इस संबंध में सर्वे खतियान 1964 के आधार पर जो प्रविष्टियां की गयी हैं, उसे मान्यता दें. वन एवं पर्यावरण विभाग का मानना है कि 1935 के सर्वे के अनुसार जंगल-झाड़ी नेचर की जमीन फारेस्ट प्रोटेक्शन एक्ट 1980 के अधीन आते हैं. पर इसे राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने दूसरी तरह से परिभाषित कर दिया.