कौशल आनंद, न्यूज 11 भारत
रांचीः 15 दिवसीय चलने वाले झारखंड का महत्वपूर्ण स्थानीय त्योहार15 दिवसीय टुसू पर्व का आज से आगाज हो गया. गांव-गांव में आज टुसू स्थापना होगा. कोरोना गाइडलाइन के तहत इस बार मोरहाबादी मैदान में टुसू महोत्सव का आयोजन नहीं किया जा रहा है. मगर गांव-गांव में यह पर्व मनाया जाएगा. कोरोना संक्रमण को देखते हुए आयोजक कोरोना गाइडलाइन के तहत इसके आयोजन का दावा किया है. आज नृत्य संगीत के साथ टुसू को स्थापित किया गया. कुरमाली भाषा परिषद के अध्यक्ष राजा राम महतो ने कहा कि कोरोना संकट के कारण इस बार कोई मेला का आयोजन नहीं किया गया। 15 जनवरी को नव वर्ष के रूप में स्वागत करें. आपसी मतभेद भुलाकर प्रेम व शांति से रहें और सादगी से पर्व मनाएं, यही अपील परिषद ने किया है.
गांव-घर मे ही मनाया जाएगा पर्व
उन्होंने जानकारी दी कि टुसू पर्व झारखंड के स्वाभिमान का पर्व है. झारखंड के पूरे कुरमी समाज व पंचपरगनिया क्षेत्र का टुसू प्रमुख त्योहार है. कोरोना काल के कारण इस वर्ष मोरहाबादी मैदान में मेला का आयोजन नहीं किया गया. मगर कुरमी समाज के घर और गांवों में टुसू महोत्सव मनाएगा. इस दौरान पारंपरिक नृत्य-संगीत की धूम छायी रहेगी. महिलाओं ने घर में टुसू की स्थापना की और माथे पर टुसू लेकर नृत्य व संगीत का आयोजन किया.
दामोदर नदी में लोग लगाते हैं डुबकी
मकर संक्रांति पर तेलमोचो पुल के निकट दामोदर नदी में लोग हजारों की संख्या में आस्था की डुबकी लगाते हैं. टुसू पर्व के रूप में मकर संक्रांति को मनाना स्थानीय लोगों की वर्षों पुरानी परंपरा है. हजारों की संख्या में महिलाएं टुसू के साथ टुसू का गीत गाते हुए दामोदर नदी में पवित्र स्नान करने जाती हैं और टुसू के प्रतीक चुड़ौल को नदी में प्रवाहित करती हैं। नहाकर चावल से बने पीठा व मूढ़ी खाना परंपरा है. मगर
इस बार कोरोना संक्रमण के कारण बहुत ही सीमित संख्या में होने की संभावना है.
झारखंडी कला-संस्कृति से भी जुड़ा है टुसू पर्व
रंग-बिरंगे टुसू झारखंड की लोक संस्कृति को दर्शाते हैं. हजारों की संख्या में लड़कियां टोली बनाकर गीत गाती हैं. ‘मकर सिनाय दामोदर चाला’, ‘बिदाई लेती गो टुसु बाला’, ‘मकर सिनाय दामोदर चाला’. ‘ढोल नागाड़ा टुसु साजावा’, ‘आर साजावा पिठाक डाला’, ‘हाला हाला माला पिंधी जीती गो टुसू बाला’, ‘मकर सिनाय दामोदर चाला’ आदि लोकगीतों की धूम रहती है.
कृषि से जुड़ा है टुसू पर्व
टुसू पर्व कृषि से जुड़ा हुआ सबसे बड़ा पर्व है, जिसकी तैयारी एक महीने पूर्व से धान कटनी के बाद से शुरू होती है. टुसू पर्व के संबंध में कहा जाता है कि टुसू कृषक परिवारों के लिए देवी के समान है, जिसका दर्जा मां अन्नपूर्णा लक्ष्मी से की गई है। धान कटनी के बाद खेत से डिनी लाई जाती है और पहले पौष को ही टुसू की स्थापना की जाती है। देवी टुसू मणि को कुंआरी कन्याओं द्वारा प्रतिदिन गेंदाफूलों से पूजन किया जाता है.
टुसू को लेकर यह है मान्यता
टुसू न तो किसी राजा महाराजा की बेटी थी और न बहन. कुछ लोग इससे जुड़ी कई काल्पनिक और मनगढ़ंत कहानियां बताते हैं. लेकिन, सत्य नहीं है. टुसू परब फसल कटने के बाद किसानों के लिए खुशी का त्योहार है. सच तो यही है कि जिसकी कृपा से अगहन से पौष मास तक घर-खलिहान धन धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। उसे देवी के रूप में पूजे जाने की परंपरा है.
टुसू मेला भी होता है आयोजित
टुसू पर्व पर मेला का भी आयोजन होता रहा है. दामोदर नदी के तेलमोचो पुल, बिरसा पुल के अलावा गवाई डैम पिंड्राजोरा, इजरी नदी, सीमाबाद पुल, सुयाडीह के निकट कपाट घाट, पोड़वा फतेहपुर के निकट नौकाघाट, बिनोद सेतु सिंहडीह, तेलीडीह के निकट गरगा नदी सहित दर्जनों जगह पर मकर संक्रांति के दिन टुसू मेला लगता है.
विशेष तरह के खान-पान बनते हैं, बाहर के लोग लौटते हैं गांव-घर
कुर्मी बहुल क्षेत्र और पूरे पंचपरगनिया क्षेत्र में इन 15 दिनों में विशेष तरह के पकवान बनाए जाते हैं. चन्ना दाल और गुड़ा का पीठा, मटन, कई प्रकार की सब्जियां बनायी जाती हैं. पूरे 15 दिन लोग एक दूसरे के घर आते-जाते हैँ, मिलते-जुलते हैं. टुसू में जो लोग बाहर में रहते हैं, वे इस पर्व में गांव-घर वापस आते हैं. पूरे 15 दिन लोग गांव-घर में जश्न मनाते हैं. टुसू पर्व के दौरान ही कुंवारे युवक-युवतियों की देखा-देखी और शादी विवाह तय किए जाते हैं. टुसू के बाद वैवाहिक कार्यक्रम भी शुरू होते हैं.