जमशेदपुर : पूरी दुनिया कोरोना के आतंक से थम सी गई है... जिन्दगी वायरस की कैद में है.. देश से कोनो कोनो से जो तस्वीरें आ रही हैं.. वे विचलित कर रही हैं.. वेदना, लाचारी के बीच जिजीविषा को लेकर जंग देखने को मिल रही है.. एक अंतहीन पलायन की त्रासदी कथा हर तेहरे पर दर्ज है.. और आंखों में एक सवाल है सिस्टम से की कोरोना बड़ा है या भूख बड़ी है.
देश के कोने कोने में गरीबी के अंधेरे के पीछे छुपी हुई वो करोड़ों आंखे थी.. जिनमे चिंता है.. परेशनी है और आशंका भी... उनके पास ना तो वर्क है ना ही होम.. वो तो अपनी पूरी जिन्दगी भूख की अग्नी में होम कर देश के तरिक्की की ईबाद्दत लख रहें थे... वे बिना क्षेत्रियता की परावह किये.. देश के लिये काम किया.. ये वो मजदूर है जिन्होने कल के भारत के लिये अपनी आज कुर्बान कर दी... लेकिन कल भी मजबूर थे... आज भी वे मजबूर हैं... और उनकी इस मजबूरी की तस्वीर सड़को पर कुछ यू दिख रही है.
राज्य के मुखिया ने पुलिस को आदेश दिया सड़क पर पैदल नहीं मजदूर गाड़ी से जायें... पुलिस भी जगी .. समाज भी जगा..किसी की नजर में ये प्रॉटकॉल टूटता दिखता हो.. लेकिन हमारी नजर में ये इंसानियत का प्रोटॉकल शुरू होने की कहानी है.
मानव सभयता के इतिहास में इतने कम समय में इतना बड़ा पलायन कभी नहीं देखा होगा.. इस सफर में कितने हमेशा हमेश के लिये पीछे छुट गयें.. भूख ने इन्हे बेघर किया.. आज वही भूख घर की ओर खीच रहा है... पहले वाली भूख सच्ची थी या आज की भूख झूठी है.. ये तर्क का समय नहीं.. बेसब्र मजदूरों के पीछे आज भी भूख खड़ी है और आगे पूरी जिन्दगी.