गोमियाः जनप्रतिनिधियों से पेंशन के लिए बार बार मिन्नत करने के बावजूद, तीन साल पहले विधवा हो चुकी असहाय 'जीरवा' को नहीं मिल रहा विधवा पेंशन. बदनसीबी ऐसी की तीन वर्ष पूर्व पति दुनिया छोड़ गए, एक बेटी है, उसे भी भगवान ने सही से सोचने समझने की शक्ति नहीं दी. जिसकी अब शादी हो चुकी है और ससुराल चली गई है. बुढ़ापे का कोई सहारा नहीं. अकेली जीरवा ही घर की इकलौती सदस्या है, जिसे कोई ना देखने वाला, ना मदद करने वाला.
पिछले साल सावन महीने में सरकार से मिले उज्ज्वला योजना के गैस चूल्हा में खाना बनाने के लिए गैस जलाने के दौरान सिलेंडर में आग लग गई और जीरवा का पूरा शरीर जल गया. आस पड़ोस के लोगों व दूर के रिश्तेदारों ने मदद कर अस्पताल पहुंचाया. उसके पास मौजूद पैसों से इलाज हुआ. इस दौरान 6 महीने तक मरणासन्न खटिया में पड़ी रही. किसी तरह राशन कार्ड के द्वारा मिलने वाले अन्न तथा कोरोना के दौरान मिले मदद से जीवन यापन किया. आज एक बार फिर उठ खड़ी हुई है और अपने जीवन यापन के लिए पेंशन की मांग करने एक अनपढ़ लड़के को साथ लेकर सोमवार को अनुमंडल कार्यालय पहुंच गई. जिसे ना साहब का नाम मालूम है ना बैठने का स्थान, बस इतना मालूम है कि किसी ने उसे बताया कि बड़े साहब गरीबों की सुनते हैं, और अपने अधिकार मांगने पहुंच गई.
एक ओर जहां आखरी पंक्ति के लोगों तक हक अधिकार पहुंचाने के लिए सरकार ने पंचायती राज की स्थापना की, पंचायत चुनाव कराए, चुनाव के दौरान उम्मीदवारों ने वोटरों से बड़े बड़े दावा कर चुनाव भी जीता, और आज वही जनप्रतिनिधि अपनी जवाबदेही भूल चुके है. जिसका जीता जागता उदाहरण आज गोमिया के पड़रिया गांव की विधवा जीरवा के रूप में देखने को मिली है. पिछले तीन साल से पेंशन के लिए दर दर का दरवाजा खटखटाया, ठोकरें खाइ, बावजूद किसी ने मदद नहीं की. अंततः किसी ने उसे तेनुघाट में बैठने वाले बड़े साहब के बारे बताया और सुनवाई होने की बात कहकर भेज दिया, लेकिन जीरवा की बदनसीबी ऐसी की साहब किसी काम से बाहर थे, और मुलाकात नहीं हो पाई,दिनभर के इंतजार के बाद निराश होकर शाम को गोमिया वापस लौट गई.