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चाईबासा/डेस्क:-एक शादीशुदा महिला का पति नहीं होने पर महिला को कैसे - कैसे दुःख झेलने पड़ते हैं. यह सोनुआ गांव के बालजुड़ी पंचायत के नुआगांव की सावित्री बानरा ( 22 ) से बेहतर कोई नहीं जान सकता. पति के असमय जाने के बाद परिवार और रिश्तेदार कैसे बदल जाते हैं, यह सावित्री की आंखों से ढुलकते आंसू बता रहे हैं. उसका दुर्भाग्य है कि 4 माह पहले एक हादसे में पति ओड़िशा के कटक निवासी आजाद समद की मौत हो गई. पति के मौत के साथ ही दुर्भाग्य उसके साथ साए की तरह चिपक गई. पति के मौत होते ही उसके सास - ससुर ने कुछ दिन पहले उसे घर से निकाल दिया. उसके बाद भी उसकी बदकिस्मती तो देखिए कि जब वह अपने मायके आई तो वहां मां - बाप ने भी उससे नाता तोड़ लिया. इधर - उधर भटकने के बाद वह 3 दिनों से मनोहरपुर रेल क्षेत्र में रहने लगी. जहां उसने किसी के सहयोग के बगैर एक बच्ची को जन्म दिया है. फिलहाल लोगों के सहयोग से वह मनोहरपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लाई गई है. चिकित्सकों ने जच्चा - बच्चा दोनों खतरे से बाहर हैं. प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अनिल कुमार ने बताया कि दोनों को ऑब्जर्वेशन में रखा गया है. साथ ही बच्चे को बेबी किट भी उपलब्ध कराया गया है.
रात में जना बच्चा, नहीं मिला सहयोग, खुद काटी बच्चे की नाल
सावित्री ने बताया कि डेढ़ साल ससुराल में थी. पति के मरने के बाद सभी उसे घर से निकल जाने को कहने लगे. साथ ही कहने लगे कि पति नहीं है तो किसके भरोसे रहोगी. अंत में 23 अप्रैल की रात उसे ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया. तब उसने पुरी - योग नगरी ऋषिकेश उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन से 24 की सुबह मनोहरपुर स्टेशन पर उतर गई. मनोहरपुर रेल क्षेत्र में ही उसने 24 की रात को एक बच्ची को जन्म दिया. परंतु प्रसव के समय कोई मददगार नहीं मिला. प्रसव पीड़ा से तड़पती रही सावित्री ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी. रात होने की वजह से कोई सहयोग नहीं मिला तो उसने सड़क पर पड़े एक ब्लेड से बच्चे की नाल काटी. उसके बाद से वह मनोहरपुर स्टेशन पर ही पड़ी रही. संयोगवश मनोहरपुर शहर निवासी तपेश्वर यादव की नजर पड़ी. तब उसने स्थानीय पत्रकारों को इसकी सूचना दी. उसके बाद पत्रकारों की पहल पर सहिया पुष्पा मेनन और सीएचसी की कर्मी रीना कुमारी के सहयोग से जच्चा - बच्चा को सीएचसी लाया गया.
पति की मौत के बाद गई मायके तो वहां भी नहीं मिली पनाह
सावित्री के अनुसार पति की मौत के बाद वह मायके आ गई. परंतु वहां भी परिजनों ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया. उसके बाद वह पुनः अपने ससुराल चली गई. जहां उसे बार - बार घर से निकल जाने को कहा जाने लगा. ससुराल वाले कहने लगे कि पति नहीं है तो अब किसके सहारे और भरोसे यहां रहोगी. अंत में ससुराल वालों ने उसे विगत 23 अप्रैल को घर से निकाल ही दिया. हालांकि इस मामले में उसके मायके और ससुराल वालों से संपर्क नहीं हो पाने की वजह से दोनों परिवारों का पक्ष नहीं मिल पाया है. चेक अप से पता चलता है कि जच्चा - बच्चा दोनों स्वस्थ हैं और खतरे से बाहर हैं. तत्काल बच्चे को बेबी किट उपलब्ध कराया गया है. दोनों को कुछ दिन ऑब्जर्वेशन में रखा जाएगा. उसके बाद कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे की कार्रवाई की जाएगी.