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रांची/डेस्क: पीतल के सजावटी उत्पादों पर बारीक आर्ट में महारत हासिल करने वाले पीतल के कामगार बाबूराम यादव इन दिनों चर्चा में है. उनके चर्चा में रहने का कारण है पीतल के बर्तनों पर उनकी नक्काशी के लिए उन्हें पद्मश्री का पुरस्कार मिलना. बाबुराम उस काम के लिए जाने जाते है, जिसे इस्तांबुल की नक्काशी कही जाती है. बता दें कि 2 साल पहले पद्मश्री का पुरस्कार पीतल के कामगार मुरादाबाद के दिलशाद हुसैन को मिला था. ठीक 2 साल बाद अब यह सम्मान बाबूराम यादव को मिला है. बाबुराम यादव भी मुरादाबाद के ही रहने वाले है. 2 साल में 2 पीतल के कामगार को पद्मश्री का पुरस्कार मिलने से पीतल के कामगारों में बहुत खुशी है.
शिल्पगुरु पुरस्कार भी मिल चूका है बाबुराम यादव को
बाबुराम का कहना है कि उन्होंने अपने उस्ताद अमर सिंह से 15 साल की आयु में मरोड़ी कला का सीखा था. इसके बाद इस काम को करते-करते महारत हासिल कर ली. बाबुराम के बनाए गए उत्पाद दिल्ली में केंद्र सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल के जरिए संचालित शो रूम में बेचे जाते है. इस शो रूम में उत्पाद खरीदने देश-विदेश के लोग आते है. बुराम ने ये भी बताया कि साल 1986 में पहला राज्य पुरस्कार मिला था. इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रिय पुरस्कार और शिल्पगुरु पुरस्कार भी मिल चूका है.
प्रधानमंत्री ने हाथ मिलाकर जाना हाल-चाल
बाबुराम यादव ने ये भी बताया कि पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर राष्ट्रपति भवन में प्रधानमंत्री ने उन्हें आवाज दी और उनसे हाथ मिला कर उनका हाल-चाल जाना. इसके साथ ही कार्यक्रम के उपरांत गृह मंत्री ने उन्हें रात्री भोज के लिए आमंत्रित भी किया. उन्होंने कहा कि सरकार अच्चा काम क्र रही है, जमीनी स्तर से जुड़े लोगों को तलाश कर, उनके हुनर की पहचान करते हुए उन्हें सम्मानित कर रही है.