दुमका : दुमका से गुजरने वाली हर सड़क इन दिनों प्रवासी मजदूरों के पैर से साफ हो रही है. रात हो या दिन नजारा एक सा रहता है. भूखे प्यासे भी मंजील पाने की जीद मजदूरों को एक बनाती है. हर मजदूर का ठीकाना अलग अलग है लेकिन कहानी सभी की एक गलती है.
देश की कोई भी सड़क हो नजारा एक सा दिखता है. कहीं पैदल तो कहीं ट्रक पर मजदूरों का हुजूम दिखता है. भूख साथ साथ चल रही है. स्थान बदल रहें हैं, किस्मत जस की तस रह जा रही है. घंटों का सफर दिनों में बदलता है.. भूख तेज होती प्यास और तड़पाती है.. लेकिन उम्मीद और होसले के आगे सड़के छोटी पड़ रही है. कहने को बहुत कुछ है लेकिन सबकी कहानी एक सी लगती है.
“लॉकडाउन में काम बंद हुआ साहब बोले काम नहीं तो पैसा नहीं दे पाउंगा.. घर से पैसे मंगाकर कुछ दिन इंतजार किया.. समय बढ़ता चला गया .... सब्र टूट गया.. पांव खूद पर खूद चल पड़ा.. ना आगे की सोची ना दूरी की...” भूख औऱ किस्मत से लड़ने वाले के सामने प्रस्थितियां उतनी इत्याचारी नहीं हो पाई.. रास्ते में कुछ फरिते मिले भूख ने कुछ दूरी बना ली.. कारवां चलता रहा.. चलता रहा.. चलता रहा.. आज हुकमरान भी साथ देने की बात कह रहें है.. साहब भी सिस्टम में आने वाले को सपोर्ट करने वाली की बात कह रहें है.. हम तो गये भी थे असंगठीत तो भले लौटे कैसे संगठीत.
सिस्टम आज भी मजदूरों से सिस्टम में आना की उम्मीद रखता है. भूख हीं लोकतंत्र की तरह सब पे बराबर बरसता है. भूख को सत्ता दे दो कभी पक्षपात नहीं करती.. कभी अपने पराये का भेद नहीं करती है.. हम मजदूर इस देश के हैं.. राज्यों ने हमे भी बांट कर अपनी मुशकिले कम कर ली.. फिर जोर से बोलते हैं... हम सब भारतीय हैं.