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रांची/डेस्कः- चुनाव में भाग लेना नागरिक की जिम्मेदारी है नए लोकतंत्र हों या पुराने लोकतंत्र अलग-अलग राजनीतिक प्रणालियों वाले देश वोट देने की अनिवार्यता को ध्यान मे रखते हुए कानून बना चुके हैं. भारत दुनियां का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है,पर यहां खास कर के मतदान को लेकर के लोगों में जागरूकता नहीं देखी जाती है. अधिक्तर लोकतांत्रिक देश जिसमें भारत सरकार भी शामिल हैं ये सारे देश चुनाव में भाग लेने को ही नागरिकता का अधिकार मानती है. कुछ देशो में मतदान न करने वालों पर प्रतिबंध तक लगाने का प्रावधान है. इतिहास की तरफ देखें तो अनिवार्य मतदान कोई नई अवधारणा नहीं है. इस नियम को लागू करने वाले पहले में से कुछ देश हैं जैसे, बेल्जियम जिन्होंने 1892 में , अर्जेंटीना 1914 में और आस्ट्रेलिया 1924 में अपने-अपने देशों में अनिवार्य मतदान नियम को लागू कर चुके हैं. वेनेजुएला औऱ नीदरलैंड भी इन देशों में था जो अनिवार्य मतदान की व्यवस्था लागू की थी बाद में वापस ले लिया था. अनिवार्य मतदान के समर्थन करने वालों का तर्क है कि लोकतांत्रिक रुप से चुने गए सरकारों के निर्णय तब तक वैध है जब इसमें उस देश की आबादी का ज्यादातर लोग अधिक अनुपात में भाग लेता हो. स्वेच्छा से मतदान नागरिकों में शैक्षिक प्रभाव डालता है. राजनीतिक दल अनिवार्य मतदान से वित्तीय लाभ भी ले सकते हैं, इससे मतदाताओं को समझाने को लेकर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता. लोकतंत्र जो लोगों के द्वारा चुना गया शासन प्रणाली है, इसमें हर नागरिक को अपना मत का प्रयोग करना ही चाहिए. ये प्रत्येक लोगों की जिम्मेदारी बनती है. प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वो अपने मनपसंद प्रतिनिधि का चुनाव करें. अनिवार्य मतदान के नियमों को अनिवार्य करने वाले देशों में शुमार हैं ये देश- , ब्राजील, बुल्गारिया, चिली, कांगो, कोस्टा रिका अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया (टायरॉल), ऑस्ट्रिया (वोरार्लबर्ग), ऑस्ट्रिया (स्टायरिया), बेल्जियम, बोलीविया , पनामा, पैराग्वे, पेरू, फिलीपींस, समोआ, स्पेन, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड लक्ज़मबर्ग, मैक्सिको, नाउरू, नीदरलैंड जॉर्जिया और वर्जीनिया, नॉर्थ डकोटा (1898) और मैसाचुसेट्स शैफहाउसेन), थाईलैंड, तुर्की, उरुग्वे, यू.एस.ए. के कुछ राज्य.