रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भुईयां जाति की उपरोक्त उप जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में सम्मिलित करने के लिए डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के प्रतिवेदन को स्वीकृति दी है. झारखंड राज्य की भुईयां जाति की उपजातियां क्षत्रीय, पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयाँ तथा गड़ाही/गहरी को भुईयाँ जाति के अंतर्गत अनुसूचित जाति की श्रेणी में सम्मिलित करने हेतु डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, रांची से प्राप्त वांछित प्रतिवेदन को अनुमोदित करते हुए प्रतिवेदन को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार को भेजे जाने के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने अपनी सहमति दी है.
क्षेत्रीय सर्वेक्षण का दिया गया है हवाला डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान रांची द्वारा शोध प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि क्षेत्रीय सर्वेक्षण के क्रम में क्षत्रीय, पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयाँ तथा गड़ाही/गहरी का मूल जाति भुईयाँ है.इनका गोत्र कच्छप, कदम, महुकल, नाग, मयुर आदि है.
इन इलाकों में है निवास स्थान
भू-अभिलेख में दर्ज उपजाति का निवास स्थान झारखंड राज्य के दक्षिणी छोटानागपुर के रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, तथा सरायकेला-खरसावां है,लेकिन वर्तमान परिवेश में वे विभिन्न क्षेत्रों में बसे हुए हैं. इनकी उत्पत्ति अनुसूचित जाति भुईयाँ से है.
आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से पिछड़ी है ये उपजातियां
चूंकि पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, देहरी क्षत्रिय, खंडित भुइयां एवं गड़ाही/ गरही जाति किसी भी जाति सूची में अधिसूचित नहीं है इसलिए जाति सूची से इसे हटाने का प्रश्न ही नहीं है। अनुसूचित जाति से अनुसूचित जनजाति में स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं है. इन उपजातियों की शैक्षणिक स्थिति कमजोर होने का मुख्य कारण आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ा होना है.