कृपा शंकर/न्यूज़11 भारत
बोकारो/डेस्क: गिरीडीह लोकसभा तथा बेरमो विधानसभा क्षेत्र के पेटरवार प्रखंड अंतर्गत मायापुर पंचायत का डोकवाबेड़ा आजादी के 75 और झारखंड निर्माण के 23 वर्ष बाद भी विकास से अछूता है. सड़क के दो छोर में बसा डोकवाबेड़ा के ग्रामीण आज भी चुआं का पानी पीने को विवश है. ऊपर टोला में नल-जल योजना के तहत पानी पाइप लाइन बिछ चुका है. प्रोपर कनेक्शन भी कर दिया गया है. लेकिन आज तक बस्ती वालों को एक बूंद पानी नहीं मिला. विकास के नाम पर 30-35 घरों में रहने वाले करीब 100 लोगों के लिए एक चापानल है. वो भी अक्सर दम तोड़ देता है. डोकवाबेड़ा के ऊपर टोला से लेकर नीचे टोला तक करीब 150-200 की आबादी है. जो पानी के लिए चुआं के पानी पर ही निर्भर है. गांव का तालाब साफ-सफाई के आभाव में अस्तित्व खोने के कगार पर खड़ा है.
खपरैल मकान से बारिश की बूंदें सरकारी आवास योजना की खोल रहा पोल
डोकवाबेड़ा में सड़कें नहीं है. अधिकांश घर खपरैल का है. बारिश के मौसम में इन घरों से टपकता पानी, बस्ती में सरकारी आवास योजना की दास्तान बताती है. मध्य तथा उच्च विद्यालय की दूरी 8-10 किलोमीटर दूर है. बच्चों को खासकर लड़कियों को स्कूल आने-जाने में परेशानी उठानी पड़ती है. हां, बिजली जरुर पहुंची है. प्रकृति से मिलने वाले पानी पर निर्भर रहने वाले ग्रामीण पूरे वर्ष में सिर्फ एक बार धान का फसल होता है. बाकी समय तो पेयजल पर भी आफत है.
पानी नहीं, सड़क नहीं, आवास नहीं तो वोट किस बात के लिए
रामचंद्र गंझू, संतोष गंझू, हराधन गंझू, फूलेश्वरी देवी, डोमनी देवी, बुधनी देवी, अनीता देवी, अघनी देवी, मखुआ देवी आदि ने कहा कि चुनाव के समय में ही नेताओं का दर्शन होता है. सब हो जाएगा का भरोसा देकर वोट बटोर ले जाते है. बाकी पांच वर्ष कोई जनप्रतिनिधि नजर नहीं आता. कहा कि गांव में अनेकों समस्या है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या पानी की है. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है. चुआं का पानी जमींदोज हो जाता है. घंटों इंतजार के बाद पानी को छानकर उसे उपयोग में लाते है.