रांची : विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर झारखंड में अलग-अलग नजारा देखने को मिला. कोरोना संक्रमण काल के बावजूद झारखंड के आदिवासी समाज ने सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए अपनी संस्कृति और सभ्यता की झलक पेश की. रांची के बनहोरा में झारखंड के कई मंत्री विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर शिरकत करते नजर आये.
ढोल और मांदर की थाप पर नाचते-झुमते आदिवासी... रंग-बिरंगे परिधानों में नृत्य करते आदिवासी... अपनी संस्कृति और सभ्यता से समाज में छाप छोड़ने वाले आदिवासी... विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर रांची के बनहोरा में वो उत्साह और उमंग देखने को मिला, उसकी कमी कोरोना संक्रमण के इस काल में खल रही थी. संक्रमण के इस काल ने भीड़ पर ब्रेक लगाने का काम जरूर किया. पर मंच से प्रदेश के मंत्रियों के संबोधन ने उस कमी को अपने संबोधन से पाट दिया. मंत्री रामेश्वर उरांव ने इस मौके पर कहा कि आदिवासियों की पहचान उसके संघर्ष है, इसलिये सरकार चाहे हमारी ही क्यों ना हो अपने हक अधिकार के लिये आवाज बुलंद करते रहिये. मंत्री आलमगीर आलम भी उनके सुर में सुर मिलाते दिखे और उन्होंने भी आदिवासियों के संघर्ष की विरासत को सलाम किया.
विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर कार्यक्रम का आयोजन मांडर विधायक बंधु तिर्की ने आयोजित किया था. इस लिये कार्यक्रम के केंद्र बिंदु में बंधु बने रहे. राज्य के अलग-अलग जिलों से आये सांस्कृतिक टीम ने कार्यक्रम में उपस्थित हर किसी को झूमने पर मजबूर कर दिया. सूबे के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख भी खुद को नहीं रोक पाये और उन्होंने बंधु तिर्की के साथ मांदर पर हाथ आजमाया. हालांकि इस बीच आदिवासी समाज के मिटते अस्तित्व को बचाने की पहल भी संबोधन के जरिये गूंजती रही.
झारखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां की राजनीति आदिवासी समाज के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती है. आज समय के साथ आदिवासी समाज का अस्तित्व खतरे में है. अपनी संस्कृति को बचाने और भविष्य को निखारने की इस जद्दो जहद में आदिवासी समाज कितना सफल हो पाता है इसके लिये थोड़ा और इंतजार करने की जरूरत है.