प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क:-कदम से कदम मिल रहे थे ताल और मादर की थाप पर झूम रहे थे लोग, यह दिन था प्रकृति का महापर्व सरहुल का. इस वर्ष शहर में हजारों की संख्या में लोग भव्य शोभायात्रा में शामिल हुए. आदिवासी समाज ने सरहुल पर्व को उल्लास के साथ मनाया. लोक पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नाचते गाते हुए शोभायात्रा में शामिल हुए सरहुल के गीतों, नगाड़ों की गूंज, लाल पट्टा साड़ी एवं सफेद गंजी कुर्ता के रंग से रंगी नजर आई अपने शहर हजारीबाग सरहुलमय हो गया.
इस दौरान शहर के हर चौक चौराहा इलाकों मे जनजाति संस्कृति की छटा नजर आ रही थी. वही पूरे शहर मे आदिवासी समाज का झंडा लगाया गया था. जैसे-जैसे शाम ढलता गया लोगों का उल्लास बढ़ता गया. पर्यावरण प्रेम की मिठास ने लोगों को बदलते मौसम में भी उनके उमंग व उल्लास को कम नहीं कर पाई.लोगों के पांव थिरकते रहे हो मंदार की धुन पर पूरा हजारीबाग झूमता नजर आया. इस शोभायात्रा का आदिवासी सरना समिति अध्यक्ष महेंद्र बेक, रतन केरकेट्टा, तीनपाहन भगत, महेंद्र टोप्पो, फूलवा कश्यप, सुनीता तिर्की, बिरसी तिर्की आदि कर रहे थे. इससे पहल वृक्ष की टहनी की पूजा-अर्चना आदिवासी केंद्रीय सरना समिति की ओर से सरहुल (मिशन) मैदान घुमकुड़िया में किया गया .शोभायात्रा में शहर से गांव तक अखरा से जुड़े आदिवासी समाज के युवक-युवतियां पारंपरिक वेश-भूषा में शामिल हुए थे. ढोल-नगाड़े की थाप पर आदिवासी प्रकृति पर्व पर झूमते, नाचते-गाते पूरे शहर में शोभायात्रा निकले.
शोभायात्रा में झांकी के माध्यम से अपने जनजातीय पहचान को दिखाने की कोशिश की गई थी. तो वही परंपरिक हथियार व सामूहिकता को देखते हुए आदिवासियों की एकजुटता व शक्ति को प्रदर्शित कर रहा था. जुलूस में बच्चों के साथ बड़ो की भी उत्साह काफी देखने को मिल रही. वही कई सामाजिक संस्था एवं कई समाज के द्वारा जुलूस का स्वागत किया गया.
पुजारी करते हैं ये भविष्यवाणी.
वही गांव के लोग बताते हैं कि इस सदियों से चली आ रही परंपरा को आदिवाशी समाज धार्मिक नियम धर्म से निभाते आ रहे हैं. आदिवासी जंगलों से जुड़े होते हैं. और प्राकृति से काफी नजदीक होते हैं. सरहुल के दिन से आदिवासी समाज कृषि का कार्य शुरू करते हैं. इस दिन से ही गेहूं की नई फसलों की कटाई का काम शुरू किया जाता है. इस दिन गांव के पुजारी जिसे पाहन कहा जाता है, वो भविष्यवाणी करते हैं कि इस साल अकाल पड़ेगा या अच्छी बारिश होगी. परंपरा है कि पाहन मिट्टी के तीन बर्तन लेते हैं. फिर इन बर्तनों में ताजा पानी भर दिया जाता है. अगले दिन इन तीनों बर्तनों को बारी बारी से देखा जाता है. अगर पानी कम हो जाता है, तो माना जाता है कि बारिश कम होगी. यानी कि अकाल की संभावना होगी है. वहीं अगर पानी पहले जितना ही रहता है, तो ये माना जाता हैकि बारिश अच्छी होगी.