जयदेव कुमार/न्यूज़11 भारत
पाकुड़/डेस्क: पाकुड़ लोकतंत्र का महापर्व भी मजदूरों को नहीं रोक पा रहा है.1 जून को जिले में मतदान होना है और प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में मजदूर अन्य प्रांत पलायन कर रहे है. मजदूरों को न प्रशासन की अपील रोक पा रही है और न ही प्रत्याशियों व कार्यकर्ताओं के वादे. ऐसे में आने वाले चुनाव में मतदान पर भी इसका असर पड़ सकता है. चुनाव के बीच जहां विभिन्न दलों के संभावित प्रत्याशी जनता को लुभावने वादें कर मतदान करने की अपील कर रहे है. वहीं मजदूर हर गांव से पलायन करने को मजबूर है. मजदूरों का पलायन इतनी अधिक तेजी से हो रहा है कि जिले के लिट्टीपाड़ा हिरणपुर से दर्जनों की संख्या में ऑटो से पाकुड़ रेलवे स्टेशन पहुंच रही है. वहां से आने वाली ऑटो गांव-गांव जाकर लोगों को ढो-ढोकर अपने साथ पाकुड़ स्टेशन ले जा रही है.
वहीं कई मजदूर ट्रेन के माध्यम से प्रदेश जा रहे है. इन मजदूरों को जाने के लिए एजेंट अपने खर्चे से ले जाते है. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह ऑटो लगी रहती है, जो मजदूरों को ढोकर ले जाती है. लिट्टीपाड़ा प्रखंड के करमा टार पंचायत के मुर्गावानी गांव के सोलो टुडु कहते है कि गांव में मजदूरी नहीं मिलती है. सड़क नही है, गर्मी में पानी की विकराल समस्या हो गई है, तालाब कुआं और चापाकल सुख गए है. मेडिकल की सुविधा नही है, सिर्फ अनाज मिलता है, वोट देकर क्या होगा? वोटर कार्ड के लिए आवेदन दिया है अभी नही मिला है, रोजगार के लिए पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान जा रहे हैं. धान काटने के लिए कुछ पैसा कमा कर फिर लौट जाएंगे. इनके साथ स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी जा रहे है. रोजगार नही है ऐसे में घर में बैठ कर क्या किया जा सकता है?
बंगाल में खेतों में काम मिल जाता है, जिससे कमाई हो जाती है. मजदूर कहते हैं कि बाहर में किसान ही अपने खेत या घर पर रहने की व्यवस्था देते है और इसके बाद सिर्फ खुराकी अपना लगता है. ऐसे में हर माह कमाई करके 10 से 15 हजार रुपये कमाई हो जाती है. चुनाव से पेट भरने वाला नहीं है. सब नेता सिर्फ भाषण देकर अपना काम निकालते है. जनता के दुखों से उन्हें कोई मतलब नही रहता है और न ही रोजगार की कोई व्यवस्था रहती है. बाहर कमाने नहीं जाएंगे तो खाएंगे क्या!