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रांची/डेस्कः हिन्दु विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश जारी हुआ है. हिन्दु विवाह नाचने-गाने ,खाने-पीने व व्यवसायिक लेनदेन का सिर्फ मसला नहीं है और न ही विशेष दबाव डालकर दहेज या उपहार मांगने का कोई अवसर. कोर्ट ने कहा कि ये एक पवित्र परंपरा और पवित्र बंधन है जो एक महिला औऱ पुरुष के बीच संबंध स्थापित करवाता है. आगे चल कर दोनों पति औऱ पत्नी का एक विशेष दर्जा प्राप्त होता है जो भारतीय समाज की एक विशेष ईकाइ है.सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने साफ कहा कि हिंदु विवाह एक संस्कृति है जिसका भारत के महान मूल्य की संस्था में एक विशेष दर्जा होना चाहिए. भारतीय युवा पुरुष औऱ भारतीय महिला को इस पवित्र संस्था में प्रवेश करने से पहले इसके बारे में गहराई से सोचना चाहिए. 19 अप्रैल को जारी एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिन्दु विवाह अधिनियम के तहत एक जोड़े के द्वारा अग्नि के चारो तरफ लिए गए सात फेरे जो एक दूसरे के बीच लिए गए सात वचनों और सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है. ऐसे पवित्र रस्मों को यदि न निभाया जाए तो उसे हिन्दु विवाह नहीं समझा जा सकता. हिन्दु विवाह अधिनियमों पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने कहा कि जब तक शादी उचित रस्मों के साथ नहीं किया जाता तबतक इसे अधिनियम के धारा 7 (1) के अनुसार संपन्न नहीं माना जा सकता. उन्हौने ये भी कहा कि बिना किसी संस्था के द्वारा सिर्फ प्रमाण पत्र जारी कर देने से वैवाहिक स्थिति की पुष्टि नहीं की जा सकती. हिन्दु विवाह अधिनियम की धारा 7 के मुताबिक यदि विवाह पूरी नहीं की गई है तो रजिस्ट्रेशन, विवाह को वैधता प्रदान नहीं करेगा.
कई जगहों पर लोगों के पास विवाह के लिए समय नहीं होता है, पूरा टाइम कैमरा मैन ले लेता है. रात भर तरह-तरह के फंक्शन होते रहते हैं. प्री वेडिंग शूट या तो आफ्टर वेडिंग शूट जबकि सबसे जरुरी मुहुर्त जो शादी का होता है जिसमें दोनों को जुड़ कर संकल्प लेने की बात आती है. वहीं पंडित जी से कहा जाता है कि कम से कम समय में शादी करवा दीजिए या सिर्फ आशीर्वाद लेकर शादी संपन्न करने की गुजारिश की जाती है. पंडित लक्षमीकांत त्रिपाठी का कहना है कि जिनकी भी शादी परंपरा और नियमों के साथ नहीं हुई है, हिन्दु रीति-रिवाज के सात फेरों के बिना हुई है, ऐसे लोगों को फिर से शादी करने पर विचार करना चाहिए. सात फेरों के वचनों को सुनना,समझना और आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए.