रांचीः जरा अदब से नाम लीजिए साहब...मैं प्याज बोल रहा हूं. लौकी, भिंडी, परवल, गोभी, टमाटर से ऊपर हैसियत है हमारी. पेट्रोल-डीजल की तरह शतक तो नहीं मारा, लेकिन पहले कई बार सेंचुरी लगा चुका हूं. वह दिन दूर नहीं जब आप मुझे एक बार फिर सेंचुरी का बल्ला उठाते देखेंगे. प्याज की अगर जुबान होती तो शायद यही कहती. प्याज की बढ़ी महंगाई ने लोगों की घरेलू बजट ही बिगाड़ दिया है. चार दिन पहले 35 से 40 रुपए बिकने वाला प्याज अब 60 के पार पहुंच गया है. हालात ऐसे हैं कि लोगों ने प्याज का इस्तेमाल कम कर दिया है.
आम लोगों के साथ खुदरा व्यापारी भी है परेशान
लजीज व्यंजन की स्वाद बढ़ाने वाली प्याज की महंगाई एक बार फिर बढ़ गई है. जिससे आम लोग बेहद परेशान है. प्याज एक ऐसा खाद्य व्यंजन है, जिसका इस्तेमाल सभी तरह के सब्जियों में किया जाता है. जिसकी स्वाद सब्जियों से गायब होने लगी है. जिससे हर वर्ग के लोगों की परेशानी बढ़ गई है. लोग इसकी खरीदारी करने बाजार तो जरूर आ रहे हैं, लेकिन दाम सुनकर आवश्यकता से कम खरीदारी कर रहे हैं.
आलम यह है कि महंगाई के इस दौर में लोग प्याज का उपयोग काफी कम या फिर ना के बराबर ही कर रहे है. प्याज की दाम में हो रही बेतहाशा वृद्धि से खरीदार ही परेशान नही हैं, बल्कि खुदरा व्यापारी भी परेशान है. खुदरा व्यापारी की माने तो बड़े व्यवसाई द्वारा स्टॉक करने की वजह से कीमत में बढ़ोतरी हो रही है. जिसके कारण इसकी बिक्री में व्यापक प्रभाव पड़ रहा है. कीमत में आई उछाल से बिक्री काफी कम हो गई है. मुनाफा तो छोड़ लागत भी निकालना मुश्किल हो रही है.
नासिक और गुजरात से की जा रही है पूरी
राज्य की आपूर्ति के अनुरूप यहां प्याज का उत्पादन काफी कम होती है, जिसकी पूर्ति महाराष्ट्र बंगाल जैसे दूसरे राज्यों से मंगा कर पूरी की जाती है....प्याज की बढ़ी महंगाई पर आलू प्याज संघ के अध्यक्ष राम लखन साहू ने कहा प्याज का उत्पादन कम होने से महंगाई बढ़ती है. मौजूदा समय में राज्य की आपूर्ति के अनुरूप प्याज का भंडारण में कोई कमी नहीं है. ट्रांसपोर्ट इंचार्ज बढ़ने से आने वाले समय में इसकी महंगाई में बढ़ोतरी हो सकती है. थोक भाव में बंगाल की प्याज 35 रुपया प्रति किलो, गुजरात का 42 रुपया प्रति किलो और नासिक का 45 रुपया प्रति किलो बिक रही है. झारखंड एक कृषि प्रधान राज्य है यहां बड़े पैमाने पर हरी साग सब्जी और प्याज की खेती होती है...लेकिन विडंबना देखिए जब राज्य के किसानों द्वारा उत्पादित फसल बाजार पहुंचती है तो किसानों को समतुल्य मूल्य नहीं मिल पाती है. वहीं जब उत्पादन शॉर्टेज हो जाती है तब उसी फसल का दाम कई गुना बढ़ जाती है...