जहां पूरे देश में होली की तैयारियां चल रही हैं, होली के रंग में लोग डूबते नजर आते हैं, वहीं झारखंड के बोकारो जिले के एक ऐसा भी गांव हैं जहां राजा के भूत के भय से डेढ़ सौ सालों से होली नहीं खेली जाती. बता दें की कसमार ब्लॉक स्थित दुर्गापुर के 11 टोले के लगभग 9 हजार बच्चे , बूढ़े व जवान रंग-गुलाल का नाम सुनकर सिहर उठते हैं. यहां किसी अनहोनी की आशंका के चलते 150 सालों होली नहीं मनाई जा रही. यहां के लोग होली पर एक-दूसरे को रंग नहीं लगाते, क्योंकि उन्हें डर है कि ऐसा करने से गांव में महामारी और आपदा आएगी,लोगों की मौत हो जाएगी.
सभी टोले प्रखंड की पहचान के रूप में स्थापित दुर्गा पहाड़ी के चारों ओर बसे हैं. गांव में अनिष्ट की आशंका से बीते डेढ सौ वर्षों से लोग होली नहीं खेलते. कमारहीर, चड़ीया ,जब - जब खेली होली , गांव में हुई कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है. उप मुखिया भीम प्रसाद महतो के अलावा गांव की महिला पुरुष बताते है की ग्रामीणों ने जब कभी होली खेलने का प्रयास किया , तब - तब गांव में अनहोनी हुई. ग्रामीणों के अनुसार कुछ दशक पहले एक बार एक मलहार परिवार गांव में सामान बेचने आया था उसे यह पता नहीं था कि क्षेत्र में होली नहीं खेली जाती है. मलहार ने होली खेल ली. इसके दूसरे दिन दुर्गापुर में एक ही परिवार के तीन सदस्यों की मौत गई. ललमटिया और कमारहीर टोला में ग्रामीणों ने होली खेलने का प्रयास किया दर्जनभर पशुओं की मौत हो गई .
राजा की हत्या को लेकर प्रचलित है एक किवदंती ग्रामीणों के अनुसार पूर्वजों से सुने इतिहास के अनुसार एक बार रामगढ़ राजा की रानी के लिए सैनिक झालदा से तसर की साड़ी खरीदकर ले जा रहे थे, जिस पर दुर्गापुर के राजा दुर्गा प्रसाद की नजर पड़ी और सैनिकों से साडी देखने के बहाने खोल दी, लेकिन उसे दोबारा समेट नहीं सके. इसकी खबर सैनिकों ने रामगढ़ राजा को दी राजा को यह बात नागवार गुजरी और दोनों के बीच मनमुटाव हो गया. कुछ समय के बाद रामगढ़ राजा ने दुर्गा प्रसाद पर चढ़ाई कर उन्हें मार डाला जिस दिन इस क्षेत्र के राजा दुर्गा प्रसाद की हत्या हुई, उस दिन होली गांव के लोग शोक दिवस के रूप में होली नहीं मनाते हैं. यहां के निवासी दुर्गापुर के राजा की बाबा बड़ाव के नाम से पूजा - अर्चना करते हैं.