रांची : झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार गठबंधन दलों के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगी. पहली बार संसदीय राजनीति में जेएमएम और कांग्रेस के संख्या बल ने संगठन के विस्तार और उसकी मजबूती की चुनौती पेश कर दी है. राजद जैसे सहयोगी दल को भी संगठन के मोर्चे पर फिर एक बार उठ खड़े होने की संभावना बढ़ा दी है.
चुनावी परिणाम ने बदल दिया कई दलों का संसदीय इतिहास
झारखंड विधानसभा के चुनावी परिणाम ने कई दलों के संसदीय इतिहास को बदल कर रख दिया. जेएमएम की टिकट पर 30 और कांग्रेस की टिकट पर 16 विधायकों का चुनाव जीतना इस संसदीय इतिहास का ताजा उदाहरण है. राजद का भी शून्य से पीछा छुटना और एक विधायक जीतने के साथ बेहतर प्रदर्शन करना इसका उदाहरण है. गठबंधन दलों की इस बड़ी जीत के बाद हेमंत सोरेन सरकार के काम-काज पर जेएमएम, कांग्रेस और राजद का राजनीतिक भविष्य टिका है. मतलब सरकार पर रहते हुए संगठन विस्तार और उसकी मजबूती का ये बेहतर अवसर होगा और चुनौती भी.
सांगठनिक मोर्चे पर कांग्रेस का हाथ अभी मजबूत होना बाकि
झारखंड की राजनीति में जेएमएम का संगठन और उसके राजनीति का स्टाईल दूसरे दलों से जुदा है. जेएमएम की मौजूदा जीत भी इसी का अहम हिस्सा है. राष्ट्रीय राजनीति में लगातार ढलान के बाद झारखंड में कांग्रेस का उभार संगठन के लिये एक बेहतर संदेश है. यह पहला मौका है जब कांग्रेस के हिस्से में 16 सीटें आई और कांग्रेस का हाथ झारखंड में पहले से ज्यादा मजबूत हो गया. हालांकि सांगठनिक मोर्चे पर कांग्रेस का हाथ अभी मजबूत होना बाकि है और कांग्रेस को संगठन के मोर्चे पर काफी मेहनत करनी होगी.
राजद के अंदर टूट के बाद गठबंधन की जीत संगठन की लिये संजीवनी
झारखंड में राजद के अंदर टूट के बाद गठबंधन की जीत को संगठन की लिये संजीवनी के तौर पर देखा जा रहा है. राजद ने गठबंधन के तहत 7 सीट पर चुनाव लड़ते हुए भले ही एक सीट पर जीत हासील की हो, पर गठबंधन धर्म का पालन करते हुए हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल में राजद को उसका हिस्सा जरूर मिला. अब राजद इस एक सीट और मंत्रिमंडल के एक बर्थ के साथ पूरे प्रदेश में लालटेन की लौ जलाने की जुगत में जुट गई है. सामाजिक समीकरण और वोटों के ध्रुवीकरण के लिहाज से ये राजद के लिये बहुत बड़ी चुनौती भी नहीं, पर अपनी पुरानी पहचान बनाने के लिये राजद को राजनीति के मैदान में काफी पसीना बहाना होगा.
वैसे तो राजनीति का ये इतिहास रहा है कि जब कभी भी कोई दल सत्ता में आती है, संगठन उसका कमजोर पड़ने लगता है. हेमंत सोरेन सरकार में अब ये देखना दिलचस्प होगा की जेएमएम, कांग्रेस और राजद का संगठन सत्ता में रहते हुए पहले के मुकाबले और ज्यादा मजबूत होती है या सत्ता के घमंड में अपनी पहचान को खो देती है.