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प्रमाणित किया जाता है कि-लखन उरांव जिंदा हैं, पेंशन के लिए हर साल जलील होते हैं लाखो लोग

प्रमाणित किया जाता है कि-लखन उरांव जिंदा हैं, पेंशन के लिए हर साल जलील होते हैं लाखो लोग

अजय लाल/न्यूज 11 भारत


रांची: 74 साल के हो चुके लखन उरांव ठीक से चल नहीं पाते. कई बार खड़ा होना तक मुश्किल हो जाता है.थोड़ी दूर चलते ही हांफने लगते हैं, चलते हैं फिर बैठ जाते हैं और फिर वह दो घंटे बाद बड़ी मुश्किल से उस अधिकारी के सामने मौजूद होते हैं जो यह कह सके की लखन उरांव जिंदा हैं. लखन उरांव जबतक नौकरी में रहे अधिकारियों के एक कॉल पर पोल पर चढ़ जाते थे. बिजली के पोल के साथ उनका हैबिट ऐसा था मानो कोई रिंग मास्टर सर्कस में शेर के साथ खेलता है. बिजली के तारों को वह देखते ही बता देते थे कहां पर खराबी आयी है. लेकिन अब 74 साल के उम्र में उन्हें जिंदा होने का प्रमाण पत्र देना पड़ रहा है. सोमवार को लखन उरांव उस सक्षम पदाधिकारी के सामने अपने पोते के साथ मौजूद थे जो यह कह सके कि लखन उरांव जिंदा हैं. यह कहानी अकेले किसी लखन उरांव की नहीं बल्कि उन लाखों लोगों की हैं जिन्हें पेशन के हर साल अपने जीवित होने का सबूत देना होता है.


क्या है मामला


राज्य और केन्द्र सरकार सहित अन्य प्रतिष्ठानों में काम के बाद रिटायर हो चुके लोगों को सरकार पेंशन देती है. राज्य सरकार के कर्मचारियों को कोषागार से अन्य को ईपीएफ कार्यालय के मार्फत बैंक से पेंशन मिलता है. हर साल ऐसे लोगों के खाते में पेंशन की राशि आ जाती है, लेकिन ऐसे कर्मचारियों को साल में एक बार अपने सक्षम पदाधिकारी के सामने सशरीर मौजूद होकर बताना पड़ता है कि वे जीवित हैं और उन्हें इसके लिए एलाईव सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर या अंगूठा लगाना लगाना पड़ता है. सोमवार को बड़ी संख्या में ऐसे लोग विभिन्न कार्यालयों में आते देखे गये. कर्मचारियों को हर साल नवम्बर में यह प्रमाण पत्र देना होता है. इस साल कोविड की वजह से इसे तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया था.


क्यों बना यह नियम


दरअसल, वर्ष 2005 के पहले ऐसा नियम नहीं था.पेंशनधारी के निधन पर सक्षम पदाधिकारी के पास नगर निगम कार्यालय से खुद मृत्यू प्रमाण पत्र संबंधित विभाग को भेज दिया जाता था, लेकिन बाद के दिनों में लोग इस सूचना को छिपाने लगे और मृतक के नाम पर भी पेंशन लेने लगे. बाद में तात्कालीन यूपीए सरकार के संज्ञान में यह मामला सामने आया और साल में एक बार पेंशनधारियों से उनके जीवित होने का प्रमाण पत्र लिया जाने लगा.


क्या कहते है अधिकारी


झारखंड राज्य कर्मचारी बीमा निगम के अधिकारी इस बात से इक्तेफाक रखते हैं कि मौजूदा नियम से उन पेंशनधारियों की भावना को धक्का लगता है जो जीवित हैं और पेंशन पा रहे हैं. लेकिन यह नियम रातों रात नहीं बनी. क्या ऐसे नियम में बदलाव नहीं हो सकता के सवाल पर अधिकारी कहते हैं कि केन्द्र की सरकार के संज्ञान में यह मामला सामने आया है और इसमें सुधार की संभावना बन रही है. आने वाले दिनों में पेंशनधारियों को सक्षम पदाधिकारी के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि सक्षम पदाधिकारी ही पेंशनधारी के घर जायेंगे और इस तरह किसी को जलील होने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी

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