धनबादः जिंदगी का सफर पूरा करने के बाद मनुष्य के मृत्योपरांत अंतिम पड़ाव श्मशान होता है. हिन्दू धर्म में श्मशान वह स्थान हैं, जहां मोक्ष प्राप्ति को नश्वर शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है. धनबाद नगर निगम ने सभी श्मशान घाटों की तस्वीर बदल दी है. तस्वीर बदलने की जिम्मेवारी धनबाद नगर निगम ने किया है. अब यहां लोग सिर्फ दासंस्कार के लिए ही नहीं आते बल्कि सुबह और शाम यहां लोग व्यायाम और योग भी करते है.
जैसे-जैसे शहर में जमीन घटती जा रही है बड़े-बड़े मॉल बनते जा रहे हैं लोगो को मॉर्निंग वर्क करने के लिए ग्राउंड की कमी के कारण अब लोग शमशान की ओर आ रहें हैं. पहले लोग श्मशान से दूर भागते थे पर अब सुबह और शाम दोनों टाइम लोग यहां घूमने आते हैं. दरअसल ये सुनने में अटपटा जरूर लग रहो हो लेकिन जिस शमशान घाट में हर सुविधा उपलब्ध किया जा रहा हो वहां लोग घुमने आएंगे ही. जैसे पेयजल, हाईटेक बर्निंग शेड.
दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात की तर्ज पर श्मशान घाटों को विकसित की गई है. इसके सौदर्यीकरण पर करोड़ से अधिक राशि खर्च किया गए है. धनबाद के सभी श्मशान घाट हाई तक हो चूका है. अब श्मशान बर्निंग घाट नहीं बल्कि एक खुबसूरत पार्क में तब्दील हो चूका है. धनबाद के श्मशान को नया लुक दिया है. धनबाद नगर निगम ने यहां आने वाले लोगों की सुविधा का विशेष ख्याल रखा है. श्मशान में हाई टेक पार्क, बैठने के लिए पवेलियन और चारों ओर ग्रीन पेच बनाया गया है. बर्निंग शेड को हाइटेक किया गया है. श्मशान में चारों ओर टाइल्स की चहारदीवारी बनायी गयी है. शौचालय और पानी की जगह-जगह व्यवस्था की गयी है.
11 करोड़ की राशि से शहर के पांच श्मशान का कायाकल्प किया गया है. मटकुरिया श्मशान घाट के सौंदर्यीकरण पर 1.65 करोड़, तेलीपाड़ा श्मशान घाट पर 1.39 करोड़, गौशाला श्मशान घाट पर 1.07 करोड़, मोहलबनी श्मशान घाट पर 3.90 करोड़, कतरास लिलोरी श्मशान खाट पर 2.74 करोड़, रुपये खर्च हुए हैं.
गौरतलब है कि इस योजना के तहत श्मशान घाटों में विद्युत शवदाह गृह के साथ-साथ शेल्टर शेड, लोगों के बैठने की सुविधा, डिजाइनर लैंप लगाया गया है, ताकि रात में भी यहां आने पर लोगों को परेशानी नहीं हो. पेयजल के साथ स्नानागार, शौचालय की सुविधा भी उपलब्ध है. घाट को सुंदर बनाने के लिए थीम बेस्ट पेटिंग और थीम बेस्ट इंट्री गेट का निर्माण किया गया है. इसके अलावे घाट के अंदर ही एक छोटा मंदिर का भी निर्माण किया गया है, ताकि आस्था के अनुसार लोग पूजा- अर्चना कर सकें.