रांची: कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को पत्र लिखकर वोट बैंक की राजनीति न करने की सलाह दी है. श्री तिर्की ने अखबार में छपी आशियाना तोड़ने का विरोध करेगी भाजपा शीर्षक खबर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चिट्ठी लिखा है. राज्य की राजधानी रांची एवं राज्य के कोने-कोने में आदिवासी जमीन की पूर्ववर्ती सरकार में लूट हुई. उस बिंदु पर भी आपके द्वारा दो शब्द बोला जाए, पूर्ववर्ती सरकार द्वारा राजधानी में कितने आशियाने उजाडे़ गए और पूर्णवास की कोई व्यवस्था नहीं किया गया.
फर्जी हुकुमनामा बनाकर भूमि का हस्तांतरण
झारखंड अलग राज्य गठन के बाद सबसे अधिक लंबे समय तक भाजपा ने राज्य में शासन किया. इसके बावजूद आदिवासी भूमि के गैरकानूनी तरीके से खरीद-फरोख्त के मामले उजागर होते रहे हैं. राजधानी से सटे जिलों में भी गैरकानूनी तरीके से सीएनटी लैंड की बिक्री बढ़ी है. भूमि माफियाओं की नजर-पेशगी भूमि पर भी है. जहां फर्जी हुकुमनामा बनाकर आदिवासी भूमि ली जा रही है. वहीं दूसरी ओर राज्य में दखल-दिहानी के हजारों मामले लंबित है.
दखल-दिहनी है लंबित
सिर्फ रांची जिला में 1894.63 एकड़ आदिवासी भूमि के आदेश हो चुके हैं. लेकिन, दखल-दिहानी की कार्रवाई पूरी नहीं की गई है. सिर्फ रांची में है 3565 दखल-दिहानी के मामले लंबित है. जहां सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर आदिवासी जमीन ली गई है. इस पर आपकी पार्टी की क्या राय है? राज्य में सीएनटी/ एसपीटी जैसे मजबूत कानून होने के बावजूद गैर आदिवासियों के बीच भूमि अवैध हस्तांतरण का सिलसिला निरंतर जारी है. विभिन्न जिलों के आदिवासियों की 36492 एकड़ भूमि गैर आदिवासियों ने हड़प ली है. वही 4745 आदिवासियों ने अपनी जमीन वापसी के लिए विभिन्न न्यायालयों में मुकदमा भी दायर किए हैं . इस पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से कोई बयान ना आना आदिवासियों के प्रति पार्टी की मानसिकता को दर्शाती है. सिर्फ आदिवासियों को वोट बैंक के रूप में उपयोग किया जाना भाजपा की नीति रही है .
विस्थापन की प्रक्रिया है लंबित
आपको ज्ञात है कि राज्य के आदिवासी-मूलवासीयों को विकास के नाम पर उजाडे गए लोगों को बेहतर पुनर्वास के साथ नौकरी और आजीविका के गंभीर संकट से जूझना पड़ रहा है. विकास के नाम पर बांध, कल- कारखाने, पार्क, सेंचुरी हाथी और बाघ कॉरिडोर, मिलिट्री फील्ड फायरिंग रेंज, हाइडल और थर्मल पावर प्रोजेक्ट, कोल, बॉक्साइट, यूरेनियम आदि तरह-तरह के खनिजों के खनन के कारण विस्थापन की लंबी फेहरिस्त है.
आदिवासी भूखा, नंगा, बेबसी और लाचार लोगों पर रहती है मौन
जिससे झारखंड में लगभग एक करोड़ लोग विस्थापित ही नहीं प्रभावित भी हैं. राष्ट्र के विकास के नाम पर अपनी पुरखों की जमीन खोने के बाद आदिवासी भूखा, नंगा, बेबसी और लाचारी में जीवन बसर कर रहा है. यह सभी मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी मुखर क्यों नहीं हो पाती? राज्य की राजधानी में एचईसी की स्थापना के लिए रैयत खुद अपनी जमीन से बेघर होकर खानाबदोश की जिंदगी जीने को मजबूर है और एचईसी के खाली पड़ी जमीन पर बाहर से आए लोग अवैध कब्जा जमाकर दुकान,मकान बना लिया क्या यह नहीं टूटना चाहिए?
अब जब माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार राजधानी में जलाशयों और नदियों में हुए अतिक्रमण को हटाया जा रहा है तब भाजपा घड़ियाली आंसू बहा रही है. जबकि, पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के तत्कालीन नगर विकास मंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा गली-गली, नाली-नाली का खेल किया गया. जिसमें 400 करोड रुपए से अधिक का बंदरबांट कर दिया गया. वर्तमान में राजधानी रांची का क्या हाल है. किसी से छुपा हुआ नहीं है. भाजपा की सरकार में आदिवासियों के आशियाने को लूटा गया. उस पर भाजपा मौन बनी रही उस पर आपकी राय जानने के इच्छुक हूं.