रांची: एक गलत फैसला किस प्रकार सरकार को नुकसान पहुंचाता है, यह छठी जेपीएससी परीक्षा के हश्र को देखकर समझा जा सकता है. पहले प्रारंभिक परीक्षा में लगभग 6300 अभ्यर्थियों का परिणाम आया और फिर कैबिनेट के निर्णय पर इसे बढ़ाकर 34 हजार कर दिया गया. इस क्रम में अभ्यर्थियों की कॉपियों की जांच के लिए पूरे देश से विषय विशेषज्ञ प्रोफेसरों को बुलाया गया.
इनके आवागमन, रहने, खाने-पीने से लेकर कॉपियों की जांच तक में लगभग चार करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हुआ. यह अभ्यर्थियों की राशि से हुआ या सरकार के खजाने से, इस पर विवाद हो सकता है लेकिन पैसे की बर्बादी से कोई इनकार नहीं कर सकता. दरअसल, छठी जेपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में पहले 5 हजार छात्रों का परिणाम निकाला गया था. बाद में एक संकल्प पत्र के माध्यम से सफल छात्रों की संख्या बढ़ाकर 6300 कर दी गई. इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों से रिपोर्ट आई कि ओबीसी कैटेगरी का कटऑफ माक्र्स जेनरल से अधिक हो गया है. इसका विरोध शुरू हुआ और विधायकों की बातों को ध्यान में रखते हुए कैबिनेट में एक निर्णय लिया गया कि सफल अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि सभी के साथ न्याय हो सके. इसके बाद प्रारंभिक परीक्षा में 34 हजार अभ्यर्थियों का रिजल्ट निकाला गया.
इस फैसले को अब हाई कोर्ट ने गलत ठहरा दिया है और पूरा परिणाम उन 6300 अभ्यर्थियों की परीक्षा पर ही निकालने को कहा गया है, जिनके परिणाम सरकार के संशोधन के तहत जारी किए गए थे. इससे पहले दूसरे संशोधन के आधार पर 34 हजार अभ्यर्थियों की मुख्य परीक्षा से लेकर कॉपियों की जांच तक का उपक्रम किया जा चुका था. हालांकि परीक्षा में 17 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे. सूत्रों के अनुसार कुछ दिनों में परिणाम सभी के सामने होगा.